*शंकर दयाल शर्मा*
(भारत के ९ वे राष्ट्रपती )
*जन्म : १९ ऑगस्ट १९१८*
(भोपाल, भारत)
*मृत्यू : २६ डिसेंबर १९९९* (उम्र ८१)
(नवी दिल्ली, भारत)
राजकीय पक्ष : भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस
पत्नी : विमला शर्मा
*कार्यकाळ*
२५ जुलै इ.स. १९९२ – २५ जुलै इ.स. १९९७
*पंतप्रधान*
पी.व्ही. नरसिंहराव
अटलबिहारी वाजपेयी
एच.डी. देवेगौडा
इंद्रकुमार गुजराल
उपराष्ट्रपती : के.आर. नारायणन
पिछले : रामस्वामी वेंकटरमण
अगले : के.आर. नारायणन
स्वतंत्र भारत के नौंवे राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा का जन्म 19 अगस्त 1918 को मध्यप्रदेश के भोपाल शहर में हुआ था. उनके पिता का नाम खुशीलाल शर्मा एवं माता का नाम सुभद्रा शर्मा था. शंकर दयाल जी ने अपनी शिक्षा देश एवं विदेश के यूनिवर्सिटी से पूरी की थी. शंकर दयाल जी ने शिक्षा की शुरुवात सेंट जॉन कॉलेज से की थी. इसके बाद उन्होंने आगरा यूनिवर्सिटी और इलाहबाद यूनिवर्सिटी से भी शिक्षा ग्रहण की थी. लॉ की पढाई (L.L.M) के लिए वे लखनऊ यूनिवर्सिटी चले गए. शिक्षा के प्रति लगन के चलते शंकर दयाल जी Ph.D करने के लिए फिट्ज़विलियम कॉलेज, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए. इसके बाद उन्होंने लन्दन युनिवर्सिटी से सार्वजानिक प्रशासन (Public Administration) में डिप्लोमा किया. इतनी शिक्षा ग्रहण करने के बाद भी डॉ शंकर दयाल शर्मा जी यहाँ रुके नहीं, उन्होंने लखनऊ युनिवर्सिटी में 9 साल तक लॉ की शिक्षा दी, और वहां प्रोफ़ेसर रहे. इसके बाद फिर लन्दन चले गए और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में भी उन्होंने बच्चों को लॉ की शिक्षा दी.
डॉ. शंकर दयाल शर्मा जी सिर्फ पढाई में ही आगे नहीं थे, वे खेलकूद में भी हमेशा आगे रहते थे. वे एक अच्छे धावक एवं तैराक थे. डॉ शर्मा जी ने पत्रकारिता में भी अपना हाथ अजमाया है, उन्होंने कविता, इतिहास, कला, संस्कृति, दर्शन, साहित्य एवं विभिन्न धर्मों के बारे में बहुत से लेख लिखे है. अपनी पढाई के समय एवं उसके बाद जब वे शिक्षक थे, उसी समय से उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अंग्रजो के विरुध्द आवाज उठानी शुरू कर दी थी.
🔮 *डॉ शंकर दयाल राजनैतिक सफर*
डॉ. शंकर दयाल जी के राजनैतिक सफ़र की शुरुवात 1940 में तब हुई, जब उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण की. ये वो पार्टी थी, जिसके अंदर रह कर उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए बहुत सारी लड़ाईयां लड़ी, बहुत से आन्दोलन में हिस्सा लिया. इसके साथ ही कई चुनाव लढ़े और जीत हासिल कर उच्च पद में विराजमान रहे. वे अपने जीवन के अंत तक इस पार्टी के प्रति बहुत ईमानदार रहे, उन्होंने इसका साथ कभी नहीं छोड़ा. 1942 में महात्मा गाँधी द्वारा चले गए “भारत छोड़ो आन्दोलन” में डॉ शंकर दयाल जी की महत्वपूर्ण भूमिका थी. भारत की आजादी के बाद शंकर दयाल जी ने भोपाल के नवाब से एक अलग इकाई के रूप में भोपाल रियासत बनाने की अपनी इच्छा प्रकट की. वे चाहते से भोपाल में नबाब का शासन अब खत्म हो जाये. शर्मा जी ने दिसंबर 1948 में नवाब के खिलाफ जनता आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसके लिए उन्हें गिरिफ्तार भी किया गया था. 23 जनवरी 1949 को शर्मा जी को, सार्वजनिक बैठकों पर प्रतिबंध का उल्लंघन करने के लिए, आठ महीने की कैद की सजा सुनाई गई. जनता के दबाब के चलते 30 अप्रैल 1949 को नबाब लोगों ने भारतीय संघ में विलय के लिए, समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए.
1950 से 1952 तक डॉ शंकर जी भोपाल कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष बन गए. तत्पश्चात 1952 में ही कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करते हुए, वे भोपाल के मुख्यमंत्री बन गए एवं 1956 तक इस पद पर रहे. 1956 से 1971 तक डॉ शंकर जी मध्यप्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे. इन सालों के अंदर कांग्रेस पार्टी के नेता के तौर पर डॉ. शंकर दयाल जी ने इंदिरा गाँधी का बहुत सहयोग किया. 1959 में जब कराची में प्राइमरी व सेकेंडरी शिक्षा के लिए यूनेस्को (UNESCO) की बैठक हुई, तब डॉ शंकर दयाल जी ने ही भारत की तरफ से प्रतिनिधित्व किया था.
जब इंदिरा गाँधी जी की सरकार आई, तब 1974 से 1977 तक वे कबिनेट में संचार मंत्री रहे. डॉ शंकर दयाल जी 2 बार 1971 एवं 1980 में लोकसभा सीट के लिए भोपाल से खड़े हुए, दोनों ही बार इन्हें सफलता प्राप्त हुई. इस तरह वे दिल्ली संसद पहुँच गए. इसके बाद वे सबसे पहले 1984 में आंध्रप्रदेश के राज्यपाल बन गए. इसी दौरान दिल्ली में रह रहे, उनकी बेटी गीतांजलि और दामाद ललित मेकन, जो की एक राजनेता थे, उन्हें सिख उग्रवादियों ने मार डाला. इसके बाद शंकर जी से आंधप्रदेश से राज्यपाल पद को छोड़ दिया, और 1985 पंजाब के राज्यपाल बन गए. इस समय भारत सरकार और सिख उग्रवादियों के बीच हिंसा छिड़ी हुई थी. आखिर में 1986 में डॉ शंकर दयाल जी महाराष्ट्र के राज्यपाल रहे. वे 1987 में तब तक वहां के राज्यपाल रहे, जब तक उन्हें देश का उपराष्ट्रपति नहीं बना दिया गया. 1987 में उपराष्ट्रपति के साथ साथ, डॉ शंकर जी राज्यसभा के अध्यक्ष भी रहे. उपराष्ट्रपति पद पर वे 5 साल तक विराजमान रहे, इसके बाद 1992 में जब आर. वेंकटरमण का कार्यकाल समाप्त हुआ, तब डॉ शंकर दयाल जी को राष्ट्रपति पद से नवाजा गया. 1992-97 तक शंकर दयाल जी राष्ट्रपति पद पर कार्यरत रहे.
📜 *डॉ शंकर दयाल शर्मा को मिले अवार्ड सम्मान*
सृन्गेरीके शंकराचार्य ने डॉ. शंकर दयाल शर्मा को “राष्ट्र रत्नम” उपाधि दी थी.
इंटरनेशनल बार एसोसिएशन, ने कानून की पढाई और उसमें योगदान के लिए डॉ शंकर दयाल को ‘दी लिविंग लीजेंड ऑफ़ लॉ’ के अवार्ड से सम्मानित किया था.
इसके अलावा डॉ शंकर को देश के कई बड़े कॉलेज के द्वारा डोक्टरेट की उपाधि दी गई है, इसके साथ ही उन्हें गोल्ड मेडल से भी सम्मानित किया गया है.
🪔 *मृत्यु*
अपने जीवन के आखिरी पांच सालों में दयाल जी को स्वास्थ्य संबंधी बहुत परेशानियाँ हुई. 26 दिसंबर, 1999 को दिल का दौरा पड़ने के कारण डॉ शंकर दयाल जी का देहांत हो गया था. उनका दाह संस्कार दिल्ली में विजय घाट के पास कर्म भूमि में हुआ था.
डॉ शंकर दयाल जी एक गंभीर व्यक्तित्व, संजीदा और प्रतिबद्ध रहने वाले थे. वे अपने कामों को पूरी लगन एवं समय पर पूरा करते थे.
कोणत्याही टिप्पण्या नाहीत:
टिप्पणी पोस्ट करा