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समाजकारण /राजकारण

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कन्हैय्यालाल दत्त

                                


            *कन्हैय्यालाल दत्त*

           (भारतीय क्रांतिकारी)


      *जन्म : 30 अगस्त 1888*

            (चंद्रनगर, कलकत्ता)

    *फाशी : 10 नवंबर 1908*

            (अलीपूर कारागृह)


⚜ *कुशाग्र, एकपाठी एवं विनम्र*

         ‘कन्हैया के बाल्यावस्था के केवल १-२ वर्ष ही चंद्रनगर के अपने घरमें बीते थे, कि उसके पिता उदरनिर्वाह के लिए परिवार के साथ मुंबई पहुंचे । मुंबईमें वे एक निजी आस्थापना में काम करने लगे । कन्हैयाके बडे होनेपर पिताजीने अध्ययन हेतु उसका नाम ‘आर्यन एज्युकेशन सोसायटी’ की पाठशालामें प्रविष्ट किया । ‘कुशाग्र, एकपाठी एवं विनम्र विद्यार्थी’के रूपमें वह पाठशालामें परिचित था । स्वभाव मिलनसार तथा परोपकारी होनेके कारण समय आनेपर स्वयं कष्ट उठाकर अन्योंको सहायता करनेकी उसकी वृत्ती थी ।’

 

💂‍♂️ *सैनिकी शिक्षा का आकर्षण*

         ‘बचपनसे ही उसे व्यायाममें रूचि थी । उसके देहकी गठन पतली थी; परंतु शरीर तगडा था । उसने बचपनसे ही लाठी चलानेकी कुशलता अवगत की थी । कन्हैया के बालमनको सैनिकी शिक्षाका भी अत्यंत आकर्षण था ।’


♻ *अंग्रेज शासनमें हुए अन्यायकारक प्रसंगोंसे युवा मन प्रभावित होना*

         ‘बाल कन्हैया अब युवा कन्हैया हुआ था । बढती हुई आयुके साथ कन्हैयाके गुणोंमें भी वृद्धि हुई । उसकी प्रगल्भता वृद्धिंगत हो गई । घरमें होनेवाले सुसंस्कार तथा सर्व ओरकी सामाजिक एवं राजनैतिक परिस्थितिका अवलोकन करनेपर चरण-दर-चरण अंग्रेज शासनद्वारा हो रही अन्यायकारक घटनाओंके कारण कन्हैयाका युवा मन प्रभावित हो रहा था ।’


♦ *बी.ए. की परीक्षा ‘इतिहास’ विषयमें विशेष श्रेणीमें उत्तीर्ण होना*

                      ‘ऐसी परिस्थितिमें महाविद्यालयीन शिक्षा हेतु अपने ही गांव जानेका निश्चय उसने किया । अतएव १९०३ में कन्हैयाने चंद्रनगरके ‘डुप्ले कॉलेज’में प्रवेश लिया । महाविद्यालयमें भी अपनी बुद्धिमानता एवं मिलनसार स्वभावके कारण कन्हैया ‘सभीके प्रिय विद्यार्थी’के रूपमें परिचित हुआ । कन्हैयाको बचपनसे ही इतिहासमें रूचि थी; इसलिए १९०७ में उसने प्रा. चारुदत्त रॉयके मार्गदर्शनमें बी.ए.की परीक्षा ‘इतिहास’ विषयमें विशेष श्रेणीमें प्रथम क्रमांकसे उत्तीर्ण की । कन्हैया को वाचन करनेमें रूचि थी ।’

💠 *सत्येंद्रनाथ बोस एवं अन्य क्रांतिकारीयोंसे परिचय होना*

         ‘कोलकाताके ‘युगांतर’ समितिके कार्यकर्ताओके साथ कन्हैयालालजीका परिचय हुआ । ‘युगांतर’के अरविंद घोष, बारींद्र घोष, उल्हासकर दत्त एवं सत्येंद्रनाथ बोस नामक अनेक प्रखर देशाभिमानी वीरोंके सहवासके कारण कन्हैयालालजी आवेशके साथ क्रांतिकार्यमें सहभागी होने लगे । उनके प्रिय अध्यापक चारुचंद्र रॉयने इतिहास की शिक्षाके अतिरिक्त बंदूक चलानेका उत्तम प्रशिक्षण भी कन्हैयालालजीको दिया । द्वंद्वयुद्धकी कला भी उन्होंने आत्मसात की थी ।’

 

🔮 *विदेशी साहसिका (सर्कस) के विरोधमें जनमत सिद्ध कर खेल बंद करना*

         ‘कन्हैयालालजीका अंग्रेज शासनके विरोधमें जनमत तैयार करनेका कार्य सदैव चलता ही था । १९०७ में ‘वॉरेन सर्कस’ नामक विदेशी साहसिका चंद्रनगरमें आई थी । उस विदेशी साहसिकाके विरोधमें जनमत तैयार कर उस साहसिकाके खेल वहां ना हो, इसलिए साहसिकाके टिकट-बिक्रीके काऊंटरके समक्ष कन्हैयालालजीने ‘पिकेटींग’ कर टिकटकी बिक्री बंद की थी । स्वदेशी वस्तुओके उपयोग करनेपर कन्हैयालालजी विशेष आग्रही थे । स्वदेशी वस्तुओंके बिक्रीकी उन्होंने दुकान भी लगाई थी ।’


🌀 *नरेंद्र गोस्वामी द्वारा विश्वासघात होकर क्रांतिकारीयों की जानकारी पुलिसको सूचित की जाना*

          चंद्रनगरकी फ्रेंच कालोनीमें बाहरसे हो रही शस्त्रसामग्रीकी आपूर्ति वहांके मेयर(महापौर)के ध्यानमें आई थी । उसके विरुद्ध उस मेयरद्वारा प्रतिबंध लगाया गया था । इसलिए क्रांतिकारीयो को अनेक अडचनें निर्माण हुई थी । अंतमें ‘उस मेयरकी हत्या करेंगे’ ऐसा उन क्रांतिकारीयोंने  निश्चय किया । १८.४.१९०८ को युगांतर समितिके नरेंद्र गोस्वामी तथा इंद्रभूषण राय नामक कार्यकर्ताओं ने महापौरके घरपर बम डालकर उसकी हत्या करनेका दायित्व स्वीकार कर वैसा प्रयास किया; परंतु संयोगवश मेयर उससे भी बच गया । पुलिस जांचमें कुछ दिनों पश्चात नरेंद्र गोस्वामी एवं इंद्रभूषण राय पकडे गए । पुलिसद्वारा ‘पकडे जानेके पश्चात क्रांतीकारकोंकी अवस्था वैसी होती है’, यह दिखाया गया; इसलिए अंतमें नरेंद्र गोस्वामी पुलिसकी शरणमें आया । पुलिसद्वारा होनेवाली यातनाओंसे मुक्तता हो एवं कारावासके निवासकालमें सुविधाएं मिले, इस शर्तपर वह क्षमाका साक्षीदार हुआ । उसने सभी क्रांतिकारीयोंकी जानकारी पुलिसको सूचित की एवं अपने सहकारीयोंके साथ विश्वासघात किया ।’

 

♨️ *नरेंद्र गोस्वामीद्वारा प्राप्त जानकारी के आधारपर अंग्रेजोने अन्य क्रांतिकारीयोंको बंदी बनाना*

         ‘नरेंद्र गोस्वामी द्वारा प्राप्त जानकारी के आधारपर शीघ्र गतिसे जांच करते समय ही प्राप्त जानकारी के आधारपर सावधानता रखकर हिंदुस्थान के वंग क्रांतिकारीयों को पकडनेका अंग्रेज अधिकारी अथक प्रयास कर रहे थे । उसी समय ३० अप्रैलको खुदीराम बोस एवं प्रफुल्लचंद्र चाकी नामक दो वंगवीरोंने मुझफ्फरपुर के किंग्जफोर्डकी बमसे हत्या करनेका प्रयास किया था । चंद्रनगर की घटना एवं किंग्जफोर्डपर हुआ आक्रमण इन दो घटनाओंके विषयमें जांच करते समय ही अंग्रेज अधिकारीयोंने नरेंद्रद्वारा प्राप्त जानकारीके आधारपर कोलकाताके १३४ हॅरीसन रोडपर स्थित माणिकतोला उद्यानके निकट के एक घरपर छापा डाला, तो बमकी एक सुसज्ज कार्यशाला ही उन्हें दिखाई दी । उसी आधारपर २.५.१९०८ को युगांतर समिति के बारींद्रकुमार घोष, अरविंद घोष, उल्हासकर दत्त, कन्हैयालाल दत्त तथा सत्येंद्रनाथ बोस नामक अनेक महत्त्वपूर्ण क्रांतीकारीयोंको अंग्रेज अधिकारीयोंने बंदी बनाया । इन सभीको बंगालके अलीपुर के मध्यवर्ती कारागृह में रखा गया था । बंगालके अंग्रेज शासनके विरोधमें जनमत निर्मिति का कार्य करनेवाले, साथ ही सशस्त्र क्रांतिकारीयोंको उनके कार्यके लिए शस्त्रोंकी आपूर्ति करनेवाले सभी प्रमुख क्रांतिकारीयोंको बंदी बनाया गया; जिसके कारण माणिकतोला उद्यानके निकट की बमकी गुप्त कार्यशाला बंद हुई । तेजीसे चल रहा क्रांतिका आंदोलन अकस्मात आए बवंडरके कारण तितर-बितरसा होकर रूक गया ।’

 

♦️ *अपने सहयोगीयों को त्यागना पडेगा; इसलिए अपनी मुक्तताके लिए परिजनोंको नकार देना*

        ‘कन्हैयालाल दत्त कारावासमें रहकर भी निर्विकार थे । कारावासमें वे निरंतर उन्हें प्रिय बंकीमचंद्रद्वारा निर्मित ‘वंदे मातरम्’ गीत स्वयं गाया करते थे एवं अन्योंको भी गानेका आग्रह करते थे । अंग्रेज शासन ने बंदी बनाए हुए क्रांतिकारीयोके विरुद्ध नरेंद्र गोस्वामी द्वारा दिए गए निवेदनके अतिरिक्त कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं था । अतएव कन्हैयालालजी के परिजनोंने तथा आप्तजनोने कन्हैयालालजीसे कहा था, ‘हम एक अच्छा अधिवक्ता नियुक्त कर आपकी मुक्तता करेंगे ।’ उसपर कन्हैयालालजीने अपने आप्तजनोंको बताया, ‘अबतक मैंने मेरे सभी सहयोगीयों के साथ कार्य किया है । जो उनके साथ होगा, वही मेरा भी होगा । मेरे जिवित होनेतक उन सभी को छोडकर मैं कभी भी नहीं जाऊंगा ।’


🛡 *सत्येंद्रनाथ बोसके साथ षडयंत्र रचकर*

विश्वासघात करनेवाले नरेंद्र गोस्वामीको सबक सिखाने का निश्चय करना

          ‘अलीपुर कारावास के सभी क्रांतिकारीयों पर चल रहा अभियोग न्यायालय में सुनवाई के लिए आया था । नरेंद्र गोस्वामी विश्वासघाती होकर क्षमाका साक्षीदार हुआ था, इसलिए उसे अन्य क्रांतिकारीयों से हटाकर अन्य कक्षमें रखा था । युगांतर समिति के क्रांतीवीरो में नरेंद्र गोस्वामी को विश्वासघातकी सबक सिखानेका निश्चय हो रहा था ; अपितुसदैव पुलिस के घेरेमें रहनेवाले नरेंद्र गोस्वामी को मिलना भी संभव नहीं था । अंततः कन्हैयालालजीने अपने साथी सत्येंद्रनाथ बोसके (खुदीराम बोसके चाचा) साथ एक षडयंत्र रचा एवं उसे प्रत्यक्ष में लानेके लिए अपने प्रयास आरंभ किए । ऐसी परिस्थिती में ही ११.८.१९०८ को खुदीराम बोस को फांसी दी गई; इसलिए कन्हैयालाल एवं सत्येंद्रनाथ का निश्चय अधिक ही दृढ हुआ ।    कन्हैयालाल दत्त एवं सत्येंद्रनाथ दोनों भी नरेंद्र गोस्वामी को कंठस्नान करवाने के उद्देश्यसे उचित अवसर की प्रतिक्षा कर रहे थे । न्यायालय में वे केवल दुरसे एक-दुसरेको देखते थे अथवा उनमें शाब्दिक संघर्ष होता था । १.९.१९०८ को नरेंद्र गोस्वामी की न्यायालय में मुख्य साक्ष होनेवाली थी । उसके पहले ही नरेंद्र को यमलोक भेजने का निर्णय कन्हैयालालजीने लिया था । उसके लिए उन्होंने नाटक करने का निश्चित किया । नरेंद्र गोस्वामी को अन्य क्रांतिकारीयों की ओरसे सदैव मार डालने की धमकीयां मिलती थी । इसके अतिरिक्त न्यायालय में भी एक-दो बार साक्ष देते समय एक क्रांतिकारीने नरेंद्र को जूता मारा था । ऐसी घटनाओं के कारण नरेंद्र गोस्वामीको रक्तचापका कष्ट होकर उनका मानसिक संतुलन भी बिगड जाता था । अतएव नरेंद्र गोस्वामी को अंग्रेज अंगरक्षकों की सुरक्षामें रूग्णालय में भरती किया था ।’

 

🏥 *दोनों ने भी अपने आपको*

*रूग्णालय में भरती करवाकर नरेंद्र का विश्वास प्राप्त करना*


  ‘२७.८.१९०८ को सत्येंद्रनाथने उदरशूल(पेटदर्द) का कारण बताकर अपने आपको रूग्णालय में भरती करवाया ।  वहां नरेंद्र के साथ बातें करते करते उसका विश्वास प्राप्त किया तथा स्वयं भी क्षमा का साक्षीदार होने के लिए सिद्ध है, ऐसा असत्य कथन किया । उसके पश्चात दो ही दिनमें कन्हैयालालजी भी उदरशूलका कारण देकर रूग्णालय में भरती हुए । रूग्णालय में भरती होने से पहले घरसे आनेवाले डिब्बेमें उन्होंने २ पिस्तौल चुपके से मंगवाकर रखे थे । एक पिस्तौल छहबारी ३८० व्यासका ‘ओसबॉर्न’ द्वारा उत्पादित था, तो अन्य ४५० व्यासका था । सत्येंद्रनाथने नरेंद्र गोस्वामी को बताया कि, ‘मैं कन्हैयालालको भी समझाकर उसे भी क्षमाका साक्षीदार होने के लिए तैयार करूंगा; क्योंकि हम दोनों के पेटदर्द जानलेवा ही है । ऐसे में भी यदि पुलिसने यातना देकर हमें कारावास में फसांया, तो हमारा जीवित रहना भी कठीन हो जाएगा । अतः तुम्हारे जैसा क्षमा का साक्षीदार होंगे, तो हमारे प्राण बच जाएंगे एवं तदुपरांत कारावास से छुटकारा भी होगा ।’  यह असत्यकथन नरेंद्र गोस्वामी को सत्य प्रतीत हुआ । उसने अंग्रेज पुलिस अधिकारीको वैसा संदेश भी भेजा ।’


🔫 *अवसर पाकर नरेंद्र गोस्वामी पर गोली चलाना एवं वह उसे मर्मस्थान पर लगना*

         ‘३१.८.१९०८ को सुबह ८ बजे नरेंद्र गोस्वामी का संदेश मिलते ही हिगिन्स नामका अंग्रेज अधिकारी नरेंद्र गोस्वामी को साथ लेकर कन्हैयालाल एवं सत्येंद्रनाथ को मिलने आया । अपने आखेट की प्रतिक्षा में शिकारी सिद्ध ही थे । दूरसे ही नरेंद्र गोस्वामीको आते हुए कन्हैयालालजीने देखा एवं सत्येंद्रनाथ को संकेत किया । रूग्णालय के एक कोने में ही अंग्रेज अधिकारी हिगिन्सको सत्येंद्रनाथने रोक लिया एवं ‘उसे कुछ गुप्त बात कह रहे है’, ऐसा अविर्भाव कर उसके कानमें कुडबुडाया । हिगिन्स की समझ में कुछ भी नहीं आया, इसलिए हिगिन्स प्रश्नभरी मुद्रा कर सत्येंद्रनाथ की ओर केवल देखता ही रह गया । इतनेमें नरेंद्र गोस्वामी अधिक आगे बढ गया था । इस अवसर का लाभ उठाकर कन्हैयालालजीने नरेंद्र गोस्वामी को रोककर उसे मारनेके लिए रिव्हॉल्व्हर बाहर निकाला । यह देखकर उन्हें पकडने के लिए हिगिन्स आगे दौडा । नरेंद्र गोस्वामी भयभीत हुआ एवं घबराकर जान बचाने के लिए दौड पडा । दौडत-दौडते चिल्लाने लगा, ‘ये मेरी जान ले रहे हैं । मुझे बचाओ!’

    नरेंद्रके चिल्लानेकी ओर अनदेखा कर सत्येंद्रनाथ ने एक गोली चलाई । वह गोली नरेंद्र के हाथपर लगी, अतः जान बचाने हेतु वह दौडता रहा । उसे बचानेके लिए हिगिन्सने कन्हैयालालजी एवं सत्येंद्रनाथ को रोकने की पराकाष्टा की; परंतु देशद्रोही तथा मित्रद्रोही,  नरेंद्र को इतनी सहजतासे छोड देने को यह बंगाली बाघ तैयार नहीं थे । हिगिन्स को मारपीट कर घायल किया; इसलिए हिगिन्स निष्क्रिय होकर पडा था । कन्हैयालाल एवं सत्येंद्रनाथ दोनों पुनः नरेंद्रके पिछे दौडे । रूग्णालयका परिसर बहुत बडा था; परंतु वहांसे बाहर निकलने का मार्ग कन्हैयालालजीने रोक रखा था, इसलिए नरेंद्रको केवल यहां से वहां भागने के अतिरिक्त कोई पर्याय नहीं था । इतने में यह कोलाहल सुनकर लिटन नामक एक सुरक्षा रक्षक वहां आया । नरेंद्रको बचाने के लिए वह दौडते हुए आ रहा है, यह देखते ही सत्येंद्रनाथने लिटनपर ३-४ मुष्टीप्रहार किए । लिटन धरती पर लुढक गया । इस अवसरका लाभ ऊठाकर कन्हैयालालजीने अपने पिस्तौल से नरेंद्रपर गोली चलाई । वह गोली नरेंद्र के मर्मस्थानपर लगी । गोली लगने के कारण नरेंद्र गोस्वामी वहां के एक गंदे पानी की नाली में गिर गया । नालीमें गिरते गिरते वह कहने लगा कि, ‘‘मेरे विश्वासघात के कारण ही इन्होंने मुझे मार दिया ! मेरी जान ली !’’


🔱 *राष्ट्रद्रोही को मारने पर सर्व जनता द्वारा ‘अच्छा हुआ’, ऐसी प्रतिक्रिया आना*

         ‘कन्हैयालालजी एवं सत्येंद्रनाथने मिलकर एक राष्ट्र्रद्रोही विश्वासघाती को कंठस्नान करवाकर यमलोक भेज दिया । अपना ध्येय पूरा करते ही ‘वन्देमातरम्’का जयघोष कर सत्येंद्रनाथ एवं कन्हैयालालजी पुलिसके आनेकी प्रतिक्षा कर रहे थे । चारों ओर के बंदी, सहकारी तथा कारावास की सुरक्षा सेना सभी के सभी स्तब्ध हुए थे । कुछ ही देर में अंग्रेज अधिकारी वहां आए । उन्होंने दोंनो वंगवीरों को हथकडी पहनाई एवं उनके पिस्तौल हस्तगत किए । कारागृहाधिकारी के कक्ष में आनेके उपरांत कारागृहाधिकारी इमर्सनने कन्हैयालालजीको पूछा, ‘‘तुम्हारे पास पिस्तौल कहांसे आए ? किसने दिएं ?’’ उसपर कन्हैयालालजीने हंसते हंसते उत्तर दिया, ‘‘ये पिस्तौल हमें वंगवीर खुदीरामके भूतने कल रात १२ बजे दिए ।,  विश्वासघाती नरेंद्रकी हत्याके कारण संपूर्ण हिंदुस्थान की जनता कह रही थी, ‘राष्ट्र्रद्रोही को दंड होना ही चाहिए था । अच्छा हुआ दुष्टात्मा मर गया !’

 

◼️ *दोनोंको भी मृत्युदंड घोषित होना*

         ‘७.९.१९०८ को सेशन कोर्ट में कन्हैयालाल दत्त एवं सत्येंद्रनाथ बोसपर अभियोग आरंभ हुआ । कुछ दिन उपरांत वह अभियोग वरिष्ठ न्यायालय में गया । न्याय देनेका केवल नाटक ही था, इसलिए निर्णय देनेके लिए अंग्रेज शासन जितना उत्सुक था, उनकी अपेक्षासे अधिक उत्साही थे बंगाल के बाघ कन्हैयालालजी एवं सत्येंद्रनाथजी । वे जानते थे कि, मृत्युदंड ही होनेवाला है । उनकी अपेक्षाके अनुसार ही निर्णय आया, फांसीका  दंड ! फांसीके दिन भी निश्चित हुए । १०.११.१९०८ को कन्हैयालालजी को तथा २१.११.१९०८ को सत्येंद्रनाथ को !’

 

💎 *दोनों  का भी कर्तव्यपूर्तिके आनंदमें मग्न रहना*

         ‘कन्हैयालाल एवं सत्येंद्रनाथ दोनों भी कर्तव्यपूर्ति के आंनद में मग्न थे । देश के लिए प्राणार्पण करने की उनकी इच्छा पूर्ण होनेवाली थी । अलीपुर का कारागृह अधिकारी इमर्सन कन्हैयालालजी को कहने लगा कि, ‘‘तुम्हें फांसी की गंभीरता नहीं है । फांसी अर्थात मृत्यु ! यह आनंदमय घटना नहीं है ।’’ कन्हैयालालजी के बडे भाई उन्हें मिलने के लिए आए थे । फांसी के दंडके कारण वे इतने व्याकुल हुए थे कि, कन्हैयालालजी ने ही उनका सांत्वन किया । उन्होंने कहा, ‘‘कुछ भी चिंता मत करो । मेरा भार १२ पौंडसे बढ गया है ।’’ यह बात सत्य ही थी । दंडका कोई भी दबाव उनके मनपर नहीं आया था ।


⛓ *फांसी*

          ‘१०.११.१९०८ को अलीपुर के कारागृह में प्रात: ५ बजे कन्हैयालालजी को जगाया गया । उस रातमें भी वे शांति से सो पाए थे । ‘स्नानादि कर्म निपटाकर शुचिर्भूत होकर किसी मंगल कार्य के लिए जाना हैं ’, इसी उत्साहसे कन्हैयालालजी अपनी कोठरी से बाहर निकले, वह भी ‘वंदेमातरम्’ का जयघोष करते हुए । उसी समय अन्य बंदी तथा क्रांतिकारीयोंने उन्हें मातृभूमिका जयघोष कर प्रतिसाद दिया । साथ ही शुभकामनाएं भी दी । वधस्तंभ पर चढते ही वे स्वयं अपने हाथो से ही फांस गलेमें अटकाकर सज्ज हुए । उस समय उन्होंने कारागृह अधिकारी इमर्सन को पूछा कि, ‘‘अभी मैं आपको वैसा दिख रहा हूं ?’’ तदुपरांत उन्होंने ‘वंदे मातरम् !’ कहकर सभी लोगों से विदा लिया । ठीक ७ बजे कन्हैयालालजी को फांसी दी गई । अपने नश्वर देहका त्याग कर मातृभूमिको स्वतंत्रता प्राप्त होने हेतु प्रत्यक्ष ईश्वर को मनाने के लिए कन्हैयालालजी ने स्वर्गकी ओर प्रस्थान किया ।’


🔥 *विशाल अंत्ययात्रा एवं कालीघाट स्मशानभूमि में अंत्यसंस्कार होना*

    ‘कन्हैयालालजी का अचेतन देह कारागृह के अधिकारीने उनके बडे भाई डॉ.आशुतोष के स्वाधीन किया । मृत्युके पश्चात भी कन्हैयालालजी का मुख संतुष्ट एवं शांत था । उनके मुखपर कोई भी दुःख नहीं दिख रहा था । कन्हैयालाल दत्तका पार्थिव उनके चंद्रनगर के घरमें लाया गया । पूरे बंगाल के गांव-गांव में से सैंकडो लोग उनके अंत्यदर्शनके लिए आए थे । कन्हैयालालजी की विशाल अंत्ययात्रा कालीघाट स्मशानभूमि में पहुंची । हृद्य कंठसे ‘कन्हैयालाल अमर रहे !’ के जयघोष में उनका नश्वर देह चंदनकी चितापर अग्निज्वालाओं में समा गया । उनके अमूल्य बलिदानकी स्मृतियों के अतिरिक्त शेष थी, केवल उनकी पवित्र रक्षा !’


 ✳ *सत्येंद्रनाथ बोस को फांसी का दंड होना एवं अंत्ययात्रा से भयभीत होकर शासनद्वारा उनपर कारागृह में ही अंत्य संस्कार होना*

   ‘कन्हैयालालजी के अंत्ययात्रा में सहभागी जनताका प्रतिसाद देखकर अंग्रेज शासन भयभीत हुआ था । २१.११.१९०८ को सत्येंद्रनाथ बोसका पार्थिव फांसीके उपरांत कारागृह के बाहर ले जानेकी अनुमति शासनद्वारा अस्वीकार की गई एवं कारागृह में ही अंत्यसंस्कार किए गए ।

    हिंदुस्थानकी स्वतंत्रताके लिए आत्मसमर्पण करनेवाले दो निर्भय देशभक्त कन्हैयालाल दत्त एवं सत्येंद्रनाथ बोसको वर्तमान भारतीय समाज भूल गया है, ऐसा प्रतीत होता है । स्वतंत्रता संग्राममें सहभागी ज्ञात-अज्ञात वीरोंद्वारा की गई बलिदानकी सार्थकताको हमें सावधानीसे संजोए रखना चाहिए । यही वास्तविक रूपमें उन्हें श्रद्धांजली होगी

  

       

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