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प्रीतिलता वड्डेदार ..

 प्रीतिलता वड्डेदार या भारतीय स्वातंत्र्यलढ्यातील एक महत्त्वाच्या क्रांतिकारक होत्या. त्यांनी आपल्या शौर्याने आणि बलिदानाने भारतीय स्वातंत्र्यलढ्यात महत्त्वपूर्ण योगदान दिले.

जन्म आणि शिक्षण:

 * प्रीतिलता वड्डेदार यांचा जन्म ५ मे १९११ रोजी चितगाव (सध्याचे बांगलादेश) येथे झाला.

 * त्यांचे वडील जगबंधू वड्डेदार हे नगरपालिका कार्यालयात लिपिक होते.

 * प्रीतिलता यांनी चितगावच्या डॉ. खस्तागिर शासकीय कन्या विद्यालयात शिक्षण घेतले.

 * त्यांनी १९२८ मध्ये मॅट्रिकची परीक्षा प्रथम श्रेणीत उत्तीर्ण केली.

 * त्यांनी कोलकाता येथील बेथुन कॉलेजमधून तत्त्वज्ञानात पदवी प्राप्त केली.

क्रांतिकारी जीवन:

 * प्रीतिलता वड्डेदार यांनी स्वातंत्र्यलढ्यात सक्रिय सहभाग घेतला.

 * त्यांनी सूर्य सेन यांच्या नेतृत्वाखालील 'इंडियन रिपब्लिकन आर्मी' या क्रांतिकारी संघटनेत प्रवेश केला.

 * त्यांनी चितगाव येथील युरोपियन क्लबवर हल्ला करण्याच्या योजनेत महत्त्वाची भूमिका बजावली.

 * २४ सप्टेंबर १९३२ रोजी त्यांनी युरोपियन क्लबवर हल्ला केला, ज्यात अनेक ब्रिटिश अधिकारी जखमी झाले.

 * पोलिसांनी त्यांना घेरल्यानंतर त्यांनी सायनाइड खाऊन आत्महत्या केली.

योगदान:

 * प्रीतिलता वड्डेदार यांनी आपल्या शौर्याने आणि बलिदानाने भारतीय स्वातंत्र्यलढ्यात महत्त्वपूर्ण योगदान दिले.

 * त्यांनी महिलांना स्वातंत्र्यलढ्यात सहभागी होण्यासाठी प्रेरणा दिली.

 * त्यांचे बलिदान आजही देशभक्तांना प्रेरणा देते.

विशेष गोष्टी:

 * प्रीतिलता वड्डेदार या एक हुशार विद्यार्थिनी आणि लेखिका होत्या.

 * त्यांनी 'अपर्णा' या नावाने लेख लिहिले.

 * त्यांनी भारतीय स्वातंत्र्यलढ्यातील महिलांच्या भूमिकेवर भर दिला.

 * त्यांनी महिलांना शिक्षण आणि समान हक्कांसाठी लढण्याचे आवाहन केले.

प्रीतिलता वड्डेदार यांचे बलिदान भारतीय स्वातंत्र्यलढ्यातील एक प्रेरणादायी घटना आहे.


सुशीला दीदी


      

                 *सुशीला दीदी*

*(स्वाधीनता आंदोलन की वो नायिका, जिसने क्रांतिकारियों के लिए शादी के गहने तक बेच दिये)*

              *जन्म : 5 मार्च 1905*

            (पंजाब प्रांत , ब्रिटिश भारत)

             *मृत्यू : 13 जनवरी 1963*                                                    [(आयु 57 वर्ष) पंजाब , भारत]

राष्ट्रीयता : भारतीय

अन्य नाम : सुशीला दीदी

विद्यालय : आर्य महिला कॉलेज, जालंधर

युग : ब्रिटिश काल

आंदोलन : भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन                                              सुशीला दीदी उन तीन लोगों में शामिल हैं जिनसे भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने से पहले अंतिम मुलाकात की थी। देश ने सुशीला दीदी जैसी सैकड़ों वीरांगनाओं का स्वाधीनता में योगदान तो दूर उनका नाम तक भुला दिया।

                सुशीला दीदी  स्वाधीनता आंदोलन की वो नायिका, जिसने क्रांतिकारियों के लिए शादी के गहने तक बेच दिये

🔰 *स्वाधीनता के लिए पूरी जिंदगी समर्पित रहीं सुशीला दीदी।*

              भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के समय मातृशक्ति जितनी जागृत हुई, उतनी शायद ही कभी रही। भारत को परतंत्रता की बेडिय़ों से मुक्त कराने के लिए देश प्रेमी महिलाओं ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के अवसर पर आज हम आपको एक ऐसी ही महिला क्रांतिकारी सुशीला मोहन उर्फ सुशीला दीदी की कहानी बता रहे हैं, जिन्होंने काकोरी कांड में फंसे क्रांतिकारियों को बचाने के लिए अपनी शादी के लिए रखा गया सोना तक बेच दिया था।

               सुशीला का जन्म 5 मार्च, 1905 को पंजाब के दत्तोचूहड़ (वर्तमान में पाकिस्तान) में हुआ था। पिता डाक्टर करमचंद अंग्रेजों की सेना में मेडिकल अफसर थे, किंतु विश्वयुद्ध की विभीषिका को देखकर उन्हें अंग्रेजों से घृणा हो गई। यही कारण रहा कि उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गई राय साहब की उपाधि अस्वीकार कर दी।

              सुशीला जब किशोरावस्था में थीं तभी मां का देहावसान हो गया। दो भाई और तीन बहनों में वह सबसे बड़ी थीं। सुशीला की शिक्षा जालंधर कन्या विद्यालय से हुई और उन्हें देशभक्ति की प्रेरणा इसी विद्यालय की प्राचार्य रहीं कुमारी लज्जावती से मिली।

💥 *क्रांतिकारियों की प्रेरणा बन गया था उनका पंजाबी गीत*

लाला लाजपत राय की गिरफ्तारी से आक्रोशित होकर सुशीला ने एक पंजाबी गीत लिखा- गया ब्याहन आजादी लाडा भारत दा! यह गीत उस समय क्रांतिकारियों का पसंदीदा गीत बन गया था। सुशीला मोहन पढ़ाई के साथ-साथ कई क्रांतिकारी संगठनों से भी जुड़ गईं। इनमें क्रांतिकारियों को गुप्त सूचनाएं पहुंचाना, क्रांति की ज्वाला जनमानस में जगाने के लिए पर्चे आदि बांटना जैसे कार्य शामिल थे।

🧕🏻 *सुशीला मोहन से सुशीला दीदी बनने की कहानी*

सुशीला की देशभक्ति देखकर उनके स्कूल की प्राचार्य लज्जावती ने ही उनकी भेंट दुर्गाभाभी से कराई। धीरे-धीरे दोनों की घनिष्ठता इस कदर बढ़ी कि उनके बीच ननद-भाभी का रिश्ता बन गया। इसके पश्चात सभी क्रांतिकारियों के लिए सुशीला दीदी और दुर्गा भाभी हो गईं।

🔮 *क्रांतिकारियों की फांसी की खबर सुन हो गईं थी बेहोश*

वर्ष 1926 में देहरादून में हुए हिंदी साहित्य सम्मेलन के अवसर पर पहली बार उनकी मुलाकात सरदार भगत सिंह, भगवती चरण वोहरा (दुर्गा भाभी के पति) और बलदेव से हुई। वर्ष 1927 में जब काकोरी कांड के क्रांतिकारियों की फांसी की खबर सुशीला दीदी को लगी तो यह सुनकर ही वह बेहोश हो गई थीं।

📿 *शादी के लिए रखा 10 तोला सोना बेच दिया*

             काकोरी कांड के क्रांतिकारियों को बचाने के लिए सुशीला दीदी ने मां द्वारा उनकी शादी के लिए रखा गया 10 तोला सोना मुकदमे की पैरवी के लिए दे दिया। हांलाकि उनका यह त्याग भी क्रांतिवीरों को फांसी के फंदे से न बचा सका।

📝 *कलकत्ता में की शिक्षिका की नौकरी*

स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के पश्चात सुशीला कलकत्ता (अब कोलकाता) चली गई। वहीं उन्होंने शिक्षिका की नौकरी भी कर ली, लेकिन कलकत्ता में रहते हुए भी वह देश प्रेम से विमुख न हुईं। वह गुप्त रूप से क्रांतिकारियों की मदद करती रहीं।

💥 *असेंबली में बम फेंकने से पूर्व भगत सिंह व बटुकेश्वर से मुलाकात*                                           वर्ष 1928 में सांडर्स वध के बाद भगत सिंह और दुर्गा भाभी जब भेष बदलकर लाहौर (अब पाकिस्तान में) से कलकत्ता पहुंचे तो भगवतीचरण वोहरा और सुशीला दीदी ने स्टेशन पर उनका स्वागत किया। यही नहीं कलकत्ता में उनके ठहरने का इंतजाम भी सुशीला दीदी ने ही किया।

        आठ अप्रैल, 1929 को केंद्रीय असेंबली, दिल्ली में बम फेंकने से पूर्व भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त जिन तीन लोगों से मिले थे, उनमें दुर्गा भाभी, भाई भगवती चरण और सुशीला दीदी का नाम शामिल था।

🌀 *भगत सिंह को बचाने के लिए महात्मा गांधी के सामने रखा था प्रस्ताव*

         लाहौर षड्यंत्र केस में गिरफ्तारी के पश्चात भगत सिंह के मुकदमे की पैरवी के लिए फंड जुटाने से लेकर चंद्रशेखर आजाद की सलाह पर भगत सिंह और उनके साथियों को छुड़ाने के लिए गांधी-इरविन समझौते में भगत सिंह की फांसी को कारावास में बदलने की शर्त लेकर सुशीला दीदी महात्मा गांधी से मिलने तक गईं, किंतु गांधी ने इस शर्त को समझौते में रखने से साफ इन्कार कर दिया था।

👩‍❤️‍👨 *क्रांतिकारी साथी से ही किया विवाह*

        सुशीला दीदी को वर्ष 1932 में क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि छह माह के कारावास के बाद इन्हें छोड़ दिया गया। वर्ष 1933 में सुशीला दीदी ने क्रांतिकारी साथी रहे दिल्ली के श्याम मोहन से विवाह कर लिया। शादी के बाद सुशीला दीदी ने गरीब और असहाय स्त्रियों की सहायता के लिए दिल्ली में महिला शिल्प विद्यालय की स्थापना की।


🪔 *स्वाधीनता के बाद दुनिया को कहा अलविदा*

देश की आजादी में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाली वीरांगना सुशीला दीदी स्वाधीनता के पश्चात आर्थिक अभाव व खराब स्वास्थ्य के चलते 13 जनवरी, 1963 को इस दुनिया से अलविदा कह गईं। उनकी मृत्यु पर क्रांतिकारी वैशंपायन ने कहा था- दीदी! तुम्हें शत-शत नमन! तुम्हारी पहचान अभी नहीं हुई, पर बाद में जरूर होगी।


हालांकि यह देश का दुर्भाग्य रहा कि हम सुशीला दीदी जैसी सैकड़ों वीरांगनाओं का स्वाधीनता में योगदान तो छोडि़ए, उनका नाम तक विस्मृत कर चुके हैं।        

          🇮🇳 *जयहिंद*🇮🇳



महेंद्रसिंग धोनी..

 महेंद्रसिंग धोनी (जन्म: ७ जुलै १९८१, रांची, झारखंड) हे भारतीय क्रिकेट संघाचे माजी कर्णधार आहेत. त्यांना जगातील सर्वोत्कृष्ट कर्णधारांपैकी एक मानले जाते.

महेंद्रसिंग धोनी यांच्याबद्दलची माहिती:

 * पूर्ण नाव: महेंद्रसिंग पानसिंग धोनी

 * जन्म: ७ जुलै १९८१

 * जन्म ठिकाण: रांची, झारखंड, भारत

 * पत्नी: साक्षी धोनी

 * मुलगी: झिवा धोनी

 * पद: माजी भारतीय क्रिकेट कर्णधार

 * खेळण्याची शैली: उजव्या हाताचा फलंदाज आणि यष्टिरक्षक

महेंद्रसिंग धोनी यांचे क्रिकेटमधील विक्रम:

 * धोनी हा एकमेव कर्णधार आहे ज्याने आयसीसीच्या तिन्ही मोठ्या स्पर्धा जिंकल्या आहेत:

   * २००७ टी-२० विश्वचषक

   * २०११ एकदिवसीय विश्वचषक

   * २०१३ चॅम्पियन्स ट्रॉफी

 * एकदिवसीय क्रिकेटमध्ये सर्वाधिक वेळा नाबाद राहण्याचा विक्रम.

 * एकदिवसीय क्रिकेटमध्ये 100 पेक्षा जास्त स्टंपिंग करणारे ते एकमेव यष्टिरक्षक आहेत.

धोनीचे महत्त्वाचे रेकॉर्ड:

 * त्याने आपल्या नेतृत्वाखाली भारताला २७ कसोटीत विजय मिळवून दिला.

 * त्याने कर्णधार म्हणून सर्वाधिक (३३१) आंतरराष्ट्रीय सामने खेळण्याचा विक्रम आपल्या नावावर केला आहे.

 * एकदिवसीय क्रिकेटमध्ये सर्वाधिक षटकार मारणाऱ्या भारतीय फलंदाजांमध्ये तो दुसऱ्या क्रमांकावर आहे.

धोनीची कारकीर्द:

 * धोनीने २००४ मध्ये आंतरराष्ट्रीय क्रिकेटमध्ये पदार्पण केले.

 * २०१४ मध्ये त्यांनी कसोटी क्रिकेटमधून निवृत्ती घेतली.

 * १५ ऑगस्ट २०२० रोजी त्यांनी आंतरराष्ट्रीय क्रिकेटमधून निवृत्ती घेतली.

 * इंडियन प्रीमियर लीगमध्ये (आयपीएल) तो चेन्नई सुपर किंग्ज (सीएसके) संघाचा कर्णधार आहे.

महेंद्रसिंग धोनी यांना मिळालेले पुरस्कार:

 * राजीव गांधी खेलरत्न पुरस्कार (२००७)

 * पद्मश्री (२००९)

 * पद्मभूषण (२०१८)

महेंद्रसिंग धोनी हे भारतीय क्रिकेटमधील एक महान खेळाडू आणि कर्णधार म्हणून ओळखले जातात.


सचिन तेंडुलकर...

 सचिन तेंडुलकर हे भारतीय क्रिकेटच्या इतिहासातील एक महान खेळाडू आहेत. त्यांना 'क्रिकेटचा देव' म्हणूनही ओळखले जाते. त्यांची कारकीर्द 24 वर्षांपेक्षा जास्त काळ चालली आणि त्यांनी अनेक विक्रम प्रस्थापित केले.

सचिन तेंडुलकर यांच्याबद्दलची माहिती:

 * पूर्ण नाव: सचिन रमेश तेंडुलकर

 * जन्म: 24 एप्रिल 1973, मुंबई

 * खेळण्याची शैली: उजव्या हाताचा फलंदाज

 * प्रमुख संघ: भारत

 * कारकीर्द: 1989-2013

सचिन तेंडुलकर यांचे काही महत्त्वाचे विक्रम:

 * आंतरराष्ट्रीय क्रिकेटमध्ये 100 शतके झळकावणारे ते एकमेव खेळाडू आहेत.

 * ते कसोटी आणि एकदिवसीय क्रिकेटमध्ये सर्वाधिक धावा करणारे खेळाडू आहेत.

 * त्यांनी कसोटी क्रिकेटमध्ये 15,921 धावा आणि एकदिवसीय क्रिकेटमध्ये 18,426 धावा केल्या आहेत.

 * ते कसोटी आणि एकदिवसीय क्रिकेटमध्ये सर्वाधिक सामने खेळणारे खेळाडू आहेत.

 * त्यांनी कसोटी क्रिकेटमध्ये 51 शतके आणि एकदिवसीय क्रिकेटमध्ये 49 शतके झळकावली आहेत.

सचिन तेंडुलकर यांची कारकीर्द:

सचिन तेंडुलकर यांनी 16 वर्षांच्या वयात आंतरराष्ट्रीय क्रिकेटमध्ये पदार्पण केले. त्यांनी 1989 मध्ये पाकिस्तानविरुद्ध कसोटी सामन्यात पदार्पण केले. सचिन तेंडुलकर यांनी आपल्या कारकिर्दीत अनेक महत्त्वाच्या सामन्यांमध्ये भारताला विजय मिळवून दिला. 2011 मध्ये, त्यांनी भारतीय संघाला एकदिवसीय विश्वचषक जिंकून देण्यात महत्त्वाची भूमिका बजावली.

सचिन तेंडुलकर यांना मिळालेले पुरस्कार:

 * अर्जुन पुरस्कार (1994)

 * राजीव गांधी खेलरत्न पुरस्कार (1997-98)

 * पद्मश्री (1999)

 * पद्मविभूषण (2008)

 * भारतरत्न (2014)

सचिन तेंडुलकर हे केवळ एक महान क्रिकेटपटूच नाहीत, तर ते एक आदर्श व्यक्ती देखील आहेत. त्यांनी आपल्या खेळाने आणि व्यक्तिमत्त्वाने जगभरातील कोट्यवधी लोकांना प्रेरणा दिली आहे.


कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी



      *कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी*

      *जन्म : 30 दिसंबर, 1887*
             भड़ोच (गुजरात)

      *मृत्यु : 8 फरवरी, 1971*
                बम्बई (मुम्बई)

नागरिकता : भारतीय
प्रसिद्धि : स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, क़ानून विशेषज्ञ, साहित्यकार तथा शिक्षाविद

धर्म : हिन्दू

आंदोलन : होम रूल आंदोलन, बारदोली सत्याग्रह, नमक सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आन्दोलन

विद्यालय : बम्बई विश्वविद्यालय
शिक्षा : एल.एल.बी. (वकालत)
विशेष योगदान भारतीय विद्या भवन की स्थापना

पद : राज्यपाल (उत्तर प्रदेश)
कार्यकाल 2 जून, 1952 से 9 जून 1957 तक

अन्य जानकारी : संविधान-निर्माण के लिए बनायी गयी समितियों में से कन्हैयालाल मुंशी सबसे ज़्यादा ग्यारह समितियों के सदस्य बनाये गये थे।

कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे | उन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लिया , संविधान निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी , उन्होंने राज्य और केंद्र सरकार के मंत्री तथा उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के रूप में काम किया | उपन्यासकार और नाटककार के रूप में भी उन्होंने बहुत ख्याति अर्जित की | भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए उनके द्वारा स्थापित “भारतीय विद्या भवन” आज भी महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है |

श्री मुंशी का जन्म 30 दिसम्बर 1887 को दक्षिण गुजरात के भड़ोच नगर में हुआ था | आरम्भिक शिक्षा के बाद ये बडौदा कॉलेज में भर्ती हुए जहा उन्हें अरविन्द घोष जैसे क्रांतिकारी प्राध्यापक पढाने के लिए मिले | शिक्षा पुरी करने के बाद मुंशी ने वकालत शुरू की और अपनी सूझ-बुझ तथा कानूनी ज्ञान के कारण उनकी बहुत प्रसिद्धि हुयी | वे गुजराती और अंग्रेजी के अतिरिक्त फ्रेंच और जर्मन भाषा के भी अच्छे ज्ञाता थे | वैदिक और संस्कृत साहित्य का उन्होंने गहन अध्ययन किया था |

वे शीघ्र ही सार्वजनिक कार्यो में भी रूचि लेने लगे और 1927 में मुम्बई प्रांतीय कौंसिल के सदस्य चुने गये | 1928 के बारदोली सत्याग्रह के बाद वे गांधीजी के प्रभाव में आये | 1930 के नमक सत्याग्रह में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया | 1937 में श्री मुंशी को मुम्बई की पहली कांग्रेस सरकार में गृहमंत्री बनाया गया | 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के बाद वे फिर गिरफ्तार हो गये परन्तु इसके बाद आत्मरक्षा के लिए हिंसा के प्रयोग के प्रश्न पर मतभेद हो जाने के कारण वे कांग्रेस से अलग हो गये |

कन्हैयालाल जी स्वतंत्राता सेनानी थे, बंबई प्रांत और केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री थे, राज्यपाल रहे, अधिवक्ता थे, लेकिन उनका नाम सर्वोपरि भारतीय विद्या भवन के संस्थापक के रूप में ख्यात है। 7 नवंबर, 1938 को भारतीय विद्या भवन की स्थापना के समय उन्होंने एक ऐसे स्वप्न की चर्चा की थी जिसका प्रतिफल यह भा.वि.भ. होता- यह स्वप्न था वैसे केन्द्र की स्थापना का, ‘जहाँ इस देश का प्राचीन ज्ञान और आधुनिक बौद्धिक आकांक्षाएँ मिलकर एक नए साहित्य, नए इतिहास और नई संस्कृति को जन्म दे सकें।’ कन्हैयालाल जी जड़ता के विरोधी और नवीनता के पोषक थे। उनकी नजर में ‘भारतीय संस्कृति कोई जड़ वस्तु नहीं थी।’ वे भारतीय संस्कृति को ‘चिंतन का एक सतत प्रवाह’ मानते थे। वे इस विचार के पोषक थे कि अपनी जड़ों से जुड़े रहकर भी हमें बाहर की हवा का निषेध नहीं करना चाहिए। वे अपनी लेखनी में भी सांस्कृतिक पुनर्जागरण की बात कहते रहते थे।

वे गुजराती और अँग्रेजी के अच्छे लेखक थे, लेकिन राष्ट्रीय हित में हमेशा हिंदी के पक्षधर रहे। उन्होंने ‘हंस’ पत्रिका के संपादन में प्रेमचंद का सहयोग किया। वे राष्ट्रीय शिक्षा के समर्थक थे। वे पश्चिमी शिक्षा के अंधानुकरण का विरोध करते थे। मंत्री के रूप में उनका एक महत्वपूर्ण कार्य रहा - वन महोत्सव आरंभ करना। वृक्षारोपण के प्रति वे काफी गंभीर थे। मुन्शी जी वस्तुतः और मूलतः भारतीय संस्कृति के दूत थे। सांस्कृतिक एकीकरण के बिना उनकी नजर में किसी भी सामाजिक-राजनीतिक कार्यक्रम का कोई महत्व नहीं था।

📙 *संविधान-निर्माण में योगदान*

स्वतंत्र भारत के लिए नये संविधान-निर्माण के रचयिताओं में आदर्शवाद व यथार्थवाद के मिश्रण की आवश्यकता थी। राजनीतिक अंतर्दृष्टि और कुशाग्र कानूनी बुद्धि से परिपूर्ण कन्हैयालाल मुंशी इस कार्य में सबसे दक्ष माने गये। संविधान-निर्माण के लिए बनायी गयी समितियों में से मुंशी सबसे ज़्यादा ग्यारह समितियों के सदस्य बनाये गये। डॉ. भीमराव आम्बेडकर की अध्यक्षता में बनायी गयी संविधान निर्माण की प्रारूप समिति में कानून में ‘हर व्यक्ति को समान संरक्षण’ के सिद्धांत का मसविदा मुंशी और आम्बेडकर ने संयुक्त रूप से लिखा था। इसी प्रकार कई अड़चनों और व्यवधानों के बावजूद हिंदी तथा देवनागरी लिपि को नये भारतीय संघ की राजभाषा का स्थान दिलाने में मुंशी ने सबसे प्रमुख भूमिका निभायी। 14 सितम्बर, 1949 को संविधान सभा के इस निर्णय को प्रति वर्ष हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। संविधान-निर्माण में कन्हैयालाल मुंशी का सबसे ज़्यादा ध्यान एक मज़बूत केंद्र के अंतर्गत संघीय प्रणाली विकसित करना था, देसी रियासतों के भारत में विलय की मुश्किलों के संदर्भ में और असंख्य विविधताओं वाले इस नव-स्वतंत्र राष्ट्र में मुंशी सहित अन्य संविधान-निर्माताओं ने एक मज़बूत केंद्रीय सरकार को अपरिहार्य माना। कन्हैयालाल मुंशी के लिए भारतीय संविधान की पहली पंक्ति ‘इण्डिया दैट इज़ भारत’ वाक्यांश का अर्थ केवल एक भूभाग नहीं बल्कि एक अंतहीन सभ्यता है, ऐसी सभ्यता जो अपने आत्म-नवीनीकरण के ज़रिये सदैव जीवित रहती है।

📚 *उनकी साहित्यिक देन*

के. एम. मुंशीजी ने गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, तमिल, मराठी, अंग्रेजी आदि भाषाओं में 127 पुस्तकें लिखीं । वे गुजरात के श्रेष्ठ साहित्यकार रहे हैं । उनकी पहली कहानी ”मारी कमला” 1912 में स्त्री बोध नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई । उन्होंने ”गुजरात” का भी सम्पादन किया । उपन्यास, नाटक, कहानी, निबन्ध, आत्मकथा, जीवनी आदि पर उन्होंने अपनी लेखनी चलायी ।

⚜ *उपसंहार*

मुंशीजी गुजरात के ही नहीं, सारे देश के अमूल्य रत्न थे । शिक्षा जगत्, साहित्य जगत्, राजनीति, धर्म, दर्शन, इतिहास के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए समूचा भारतवर्ष उनका ऋणी रहेगा । वन महोत्सव का प्रारम्भ कर वृक्षारोपण के माध्यम से प्रकृति के प्रति उनका यह प्रेम समस्त मानव समुदाय के लिए उपयोगी रहेगा ।

🌀 *प्रमुख कार्य*

v  १९०४- भरूच में मफत पुस्तकालय की स्थापना

v  १९१२ – ‘भार्गव’ मासिक की स्थापना

v  १९१५-२० 'होमरुल लीग’ के मंत्री

v  ‘वीसमी सदी’ मासिक में प्रसिद्ध धारावाहिक नवलकथा लिखा

v  १९२२- ‘गुजरात’ मासिक का प्रकाशन

v  १९२५- मुंबइ धारासभा में चुने गये

v  १९२६- गुजराती साहित्य परिषदना बंधारणना घडवैया

v  १९३०- भारतीय राष्ट्रीय कोंग्रेस में प्रवेश

v  १९३०-३२ – स्वातंत्र्य संग्राम में भाग लेने के कारण कारावास

v  १९३३- कोंग्रेसना बंधारणनुं घडतर

v  १९३७-३९ – मुंबई राज्य के गृहमंत्री

v  १९३८- भारतीय विद्याभवन की स्थापना

v  १९३८- करांची में गुजराती साहित्य परिषद के प्रमुख

v  १९४२-४६- गांधीजी के साथ मतभेद और कोंग्रेस त्याग और पुनः प्रवेश

v  १९४६- उदयपुर में अखिल भारत हिन्दी साहित्य परिषद के प्रमुख

v  १९४८- सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार

v  १९४८- हैदराबाद के भारत में विलय में महत्वपूर्ण भूमिका

v  १९४८- भारतनुं बंधारण समिति के सदस्य

v  १९५२-५७ उत्तर प्रदेश के राज्यपाल

v  १९५७- राजाजी के साथ स्वतंत्र पार्टी के उपप्रमुख

v  १९५४- विश्व संस्कृत परिषद की स्थापना और उसके प्रमुख

v  १९५९ - ‘समर्पण’ मासिक का प्रारंभ

v  १९६०- राजनीति से सन्यास

   

संत गाडगे महाराज

 


            *स्वच्छतेचे पुजारी*  

          *संत गाडगे महाराज*


  *डेबूजी झिंगराजी जानोरकर*

             (समाज सुधारक)


     *जन्म : 23 फेब्रुवारी 1876*

 (शेणगाव,महाराष्ट्र , ब्रिटिश भारत)


    *निधन : 20 डिसेंबर 1956* 

                (वय 80)

  ( वलगाव, अमरावती , महाराष्ट्र )


मुख्य स्वारस्ये : धर्म , कीर्तन ,    

                      नीतिशास्त्र

प्रभाव : डाॕ. बाबासाहेब आंबेडकर , कर्मवीर भाऊराव पाटील , भाऊराव कृष्णाजी गायकवाड , तुकडोजी महाराज आणि मेहेर बाबा

                     गाडगे महाराज हे गाडगे बाबा म्हणून ओळखले जाणारे महाराष्ट्र राज्यातील एक कीर्तनकार, संत आणि समाजसुधारक होते. त्यांनी स्वेच्छेने गरीब रहाणी स्वीकारली होती. ते सामाजिक न्याय देण्यासाठी विविध गावांना भटकत असत. गाडगे महाराजांची सामाजिक न्याय, सुधारणा आणि स्वच्छता या विषयांत जास्त रुची होती. विसाव्या शतकातील समाजसुधार आंदोलनांमध्ये ज्या महापुरुषांचा सहभाग आहे, त्यापैकी एक महत्त्वाचे नाव गाडगे बाबा यांचे आहे.

                 संत गाडगे महाराजांच पूर्ण नाव डेबूजी झिंगराजी जानोरकर होते. त्यांच्या वडिलांचे नाव - झिंगराजी राणोजी जाणोरकर तर आईचे नाव - सखुबाई झिंगराजी जणोरकर हे होते. गाडगे महाराज हे वैज्ञानिक दृष्टिकोन असलेले प्रसिद्ध समाजसुधारक होते. दीनदलित आणि पीडितांच्या सेवेमध्ये आपलं संपूर्ण आयुष्य व्यतीत करणारे गाडगेबाबा हे संता मधील सुधारक आणि सुधारकां मधील संत होते. त्यांच कीर्तन म्हणजे लोक प्रबोधनाचा एक भाग असे. आपल्या कीर्तनातून समाजातील दांभिकपणा रूढी परंपरा यावर ते टीका करत. समाजाला शिक्षणाचे महत्त्व पटवून देताना स्वच्छता आणि चारित्र्य याची शिकवण गाडगेबाबा देत. गाडगेबाबा म्हणजे एक चालती-बोलती पाठशाळा होती.

         गाडगे महाराज हे गोरगरीब, दीनदलित यांच्यामधील अज्ञान, अंधश्रद्धा, अस्वच्छता यांचे उच्चाटन करण्यासाठी तळमळीने कार्य करणारे समाजसुधारक होते. तीर्थी धोंडापाणी देव रोकडा सज्जनी |" असे सांगत दीन, दुबळे, अनाथ, अपंगांची सेवा करणारे थोर संत म्हणजे गाडगेबाबा. "देवळात जाऊ नका, मूर्तिपूजा करू नका, सावकाराचे कर्ज काढू नका, अडाणी राहू नका, पोथी-पुराणे, मंत्र-तंत्र, देवदेवस्की, चमत्कार असल्या गोष्टींवर विश्वास ठेऊ नका." अशी शिकवण आयुष्यभर त्यांनी लोकांना दिली. माणसात देव शोधणार्‍या या संताने लोकांनी दिलेल्या देणग्यांतील पैशातून रंजल्या-गांजल्या, अनाथ लोकांसाठी महाराष्ट्रात ठिकठिकाणी धर्मशाळा, अनाथालये, आश्रम, व विद्यालये सुरू केली. रंजले-गांजले, दीन-दुबळे, अपंग-अनाथ हेच त्यांचे देव. या देवांतच गाडगेबाबा अधिक रमत असत. डोक्यावर झिंज्या, त्यावर खापराच्या तुकड्याची टोपी, एका कानात कवडी, तर दुसर्‍या कानात फुटक्या बांगडीची काच, एका हातात झाडू, दुसर्‍या हातात मडके असा त्यांचा वेश असे.

                    समाजातील अज्ञान, अंधश्रद्धा, भोळ्या समजुती, अनिष्ट रूढी-परंपरा दूर करण्यासाठी त्यांनी आपले पूर्ण आयुष्य वेचले. यासाठी त्यांनी कीर्तनाच्या मार्गाचा अवलंब केला. आपल्या कीर्तनात ते श्रोत्यांनाच विविध प्रश्न विचारून त्यांना त्यांच्या अज्ञानाची, दुर्गुण व दोषांची जाणीव करून देत असत. त्यांचे उपदेशही साधे, सोपे असत. चोरी करू नका, सावकाराकडून कर्ज काढू नका, व्यसनांच्या आहारी जाऊ नका, देवा-धर्माच्या नावाखाली प्राण्यांची हत्या करू नका, जातिभेद व अस्पृश्यता पाळू नका असे ते आपल्या कीर्तनातून सांगत. देव दगडात नसून तो माणसांत आहे हे त्यांनी सर्वसामान्यांच्या मनावर ठसविण्याचा प्रयत्न केला. ते संत तुकाराम महाराजांना आपले गुरू मानीत. ‘मी कोणाचा गुरू नाही, मला कोणी शिष्य नाही’ असे ते कायम म्हणत. आपले विचार साध्या भोळ्या लोकांना समजण्यासाठी ते ग्रामीण भाषेचा (प्रामुख्याने वऱ्हाडी बोलीचा) उपयोग करत असत. गाडगेबाबांनी संत तुकारामांच्या नेमक्या अभंगांचा मुबलक वापरही वेळोवेळी केला. ‘देवभोळ्या माणसापासून ते नास्तिकापर्यंत, कोणत्याही वयोगटातील लोकांना गाडगेबाबा आपल्या कीर्तनात सहजपणे गुंतवून ठेवत, आपले तत्त्वज्ञान पटवून देत. त्यांच्या कीर्तनाचे शब्दचित्र उभे करणे माझ्या ताकदीबाहेरचे काम आहे .’ असे उद्‌गार बाबांचे चरित्रकार प्रबोधनकार ठाकरे यांनी काढले होते. संत व सुधारक या दोन्हीही वृत्ती गाडगेमहाराजांत होत्या. तुकारामांप्रमाणे ठणकावून् सत्य सांगण्याचे धैर्य बाबांमध्ये होते. जनसंपर्क होता. समाजाचा अर्धा भाग जो स्त्रिया व अतिशूद्र या सर्वांना व सुशिक्षित समाजथरातील जे येतील अशा स्त्रीपुरुषांना एकत्र बसवून, म्हणजे भेदाभेद, स्पृश्यास्पृश्यता संपूर्ण बाजूस घालवून हरिभक्तीचा रस चाखण्यास सर्व वर्गातील, सर्व थरातील बायाबापडी, श्रीमंत व गरीब वगैरे सर्व एकत्र होत. बाबांची कीर्तने एकल्यानंतर तुकाराम व जोतीबाची शिकवण लोकांप्रत वाहात आहे, असे दिसते.

 

👬 *गाडगेबाबा आणि बाबासाहेबांची भेट*

                         14 जुलै 1941 मध्‍ये संत गाडगेबाबा यांची प्रकृती ठीक नव्‍हती. ते मुंबईत होते. ही माहिती एका सहका-याने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांच्‍यापर्यंत पोहोचवली. बाबासाहेब तेव्‍हा कायदेमंत्री होते. त्‍याच दिवशी सायंकाळी कामानिमित्‍त त्‍यांना दिल्‍लीला जायचे होते. पण गाडगेबाबांच्‍या प्रकृतीची बातमी ऐकताच त्‍यांनी सर्व कार्यक्रम बाजूला ठेवले. दोन घोंगड्या विकत घेऊन ते महानंदसामी या बातमी घेऊन येणा-या सहका-यासोबत हॉस्‍पिटलमध्‍ये पाहोचले. गाडगेबाबा कधीही कुणाकडून काही स्‍वीकारत नसत. पण त्‍यांनी बाबासाहेबांकडून घोंगड्या स्‍वीकारल्‍या.

गाडगेबाबा तेव्‍हा म्‍हणाले होते, "डॉ. तुम्ही कशाला आले? मी एक फकीर, तुमचा एक मिनिट महत्त्वाचा आहे. तुमचा किती मोठा अधिकार आहे."

डॉ. बाबासाहेब म्हणाले, "बाबा माझा अधिकार दोन दिवसाचा. उद्या खुर्ची गेल्यावर मला कोणी विचारणार नाही. तुमचा अधिकार मोठा आहे." या प्रसंगी बाबासाहेबांच्या डोळ्यांत अश्रू होते. कारण हा प्रसंग पुन्हा जीवनात येणार नाही हे दोघेही जाणत होते.

📚 *गाडगे महाराजांची चरित्रे*

  असे होते गाडगेबाबा (प्राचार्य रा.तु. भगत)

ओळख गाडगेबाबांची (प्राचार्य रा.तु. भगत)

कर्मयोगी गाडगेबाबा (मनोज तायडे)

गाडगेबाबा (चरित्र, प्रबोधनकार ठाकरे)

गाडगे बाबांचा पदस्पर्श (केशव बा. वसेकर)

श्री गाडगेबाबांचे शेवटचें कीर्तन (गो.नी. दांडेकर)

Shri Gadge Maharaj (इंग्रजी, गो.नी. दांडेकर)

गाडगेबाबांच्या सहवासात (जुगलकिशोर राठी)

गाडगे माहात्म्य (काव्यात्मक चरित्र, नारायण वासुदेव गोखले)

गोष्टीरूप गाडगेबाबा (विजया ब्राम्हणकर)

निवडक गाडगेबाबा (प्राचार्य रा.तु. भगत)

मुलांचे गाडगेबाबा (प्राचार्य रा.तु. भगत)

लोकशिक्षणाचे शिल्पकार (रा.तु. भगत)

लोकोत्तर : गाडगेबाबा जीवन आणि कार्य (डॉ. द.ता. भोसले)

The Wandering Saint (इंग्रजी, वसंत शिरवाडकर)

संत गाडगेबाबा (गिरिजा कीर)

संत गाडगेबाबा (दिलीप सुरवाडे)

संत गाडगेबाबा (प्राचार्य रा.तु. भगत)

Sant Gadagebaba (इंग्रजी, प्राचार्य रा.तु. भगत)

संत गाडगेबाबांची भ्रमणगाथा (प्राचार्य रा.तु. भगत)

श्रीसंत गाडगे महाराज (मधुकर केचे)

श्री संत गाडगे महाराज ऊर्फ गोधडे महाराज यांचे चरित्र (पां.बा. कवडे, पंढरपूर)

संत श्री गाडगे महाराज (डॉ. शरदचंद्र कोपर्डेकर)

गाडगे महाराजांच्या गोष्टी (सुबोध मुजुमदार)

समतासूर्य गाडगेबाबा (प्राचार्य रा.तु. भगत )

स्वच्छतासंत गाडगेबाबा (प्राचार्य रा.तु. भगत)

🎥 *गाडगेबाबांच्या जीवनावरील  चित्रपट*

                डेबू : हा चित्रपट गाडगे महाराजांच्या जीवनावर आहे. दिग्दर्शक - नीलेश जलमकर

देवकीनंदन गोपाळा : हाही चित्रपट गाडगे महाराजांच्या जीवनावर आहे. दिग्दर्शक - राजदत्त


📖 *साहित्य संमेलन*

               महाराष्ट्रात गाडगेबाबा विचार साहित्य संमेलन नावाचे संमेलन भरते.


⏳ *मृत्यू*

                       गाडगे महाराजांचे अमरावती जवळ पेढी नदीच्या काठावर, वडगाव जि. अमरावती 20 डिसेंबर 1956 रोजी निधन झाले. 


🏵 *सन्मान* 

                       त्यांच्या सन्मानार्थ महाराष्ट्र सरकारने संत गाडगे बाबा ग्राम स्वच्छता अभियान प्रकल्प २०००-०१ मध्ये सुरू केला. हा कार्यक्रम स्वच्छ गावे सांभाळणार्‍या ग्रामस्थांना बक्षिसे देतो.  याव्यतिरिक्त, भारत सरकारने त्यांच्या सन्मानार्थ स्वच्छता व पाणी यासाठी राष्ट्रीय पुरस्काराची स्थापना केली.  त्यांच्या सन्मानार्थ अमरावती विद्यापीठाला त्यांचे नाव देण्यात आलेले आहे.

🏵 *सन्मान*

            भारताच्या टपाल खात्याने त्यांच्या नावावर स्मारक शिक्के जारी करुन गाडगे महाराजांचा गौरव केला होता.


 🙏🌹 *गोपाला... गोपाला... देवकीनंदन गोपाला...* 🌹🙏

        



अशोक कामटे

 


              *अशोक कामटे*

     (अतिरिक्त पोलीस कमीश्नर, मुंबई)

   *जन्म: २३ फेब्रुवारी १९६५*

           (चांबळी, महाराष्ट्र)

   *मृत्यू : २७ नोव्हेंबर २००८*

          (चौपाटी , मुंबई)


पुरस्कार : अशोक चक्र(२००९)

धर्म : हिंदू

वडील : मारुतीराव


      मुंबईच्या आतंकवादी हल्ल्यात शहीद झालेले पोलीस कमिशनर पैलवान अशोक कामटे यांची आज जयंती . त्यांचा जन्म 23 फेब्रुवारी 1965 रोजी झाला . ते एक कर्तव्य कठोर पोलीस अधिकारी होते आणि त्यांना मुंबईचे रक्षण करताना वीरगती मिळाली . पण फार थोड्या लोकांना माहिती आहे की ते उत्कृष्ट पैलवानही होते . जेथे मुरारबाजीसारखा वाघ छत्रपती शिवरायांना पुरंदरावर मिळाला त्या पुरंदरच्या पायथ्याशी असलेल्या चांबळी गावचे हे सुपुत्र.


            या गावात कुस्तीची परंपरा आहे. कामटे याचे वडील कर्नत होते व ते कुस्तीच्या खेळातूनच लष्करात भरती झाले होते. तर आजोबा पोलीस अधिकारी होते . अशोक कामटे यानी अनेक नामाकित पैलवानांना अस्मान दाखविले होते . कोडाईकनातव्या इंटरनेशनल स्कूलमधून कामटे याचे शालेय शिक्षण पूर्ण झाले , तर पुढील शिक्षण राजकोटच्या राजकुमार महाविद्यालयात झाते . त्याना आतरराष्ट्रीय शिष्यवृत्तीही मिळाली होती , मुंबईच्या झेवियर्स महाविद्यालयातून त्यानी पदवी प्राप्त केली , तर दिल्लीच्या सेंट स्टीफन महाविद्यालयात एमए पूर्ण केले . त्याना कॅम्प रायझिंग सन मधून आतराष्ट्रीय शिष्यवृत्ती मिळाली व ते 1992 मध्ये उत्तीर्ण झाले . पेरू येथे झालेल्या ज्युनिअर पॉवर लिफ्टींग स्पर्धेत 1978 मध्ये त्यांनी भारताचे प्रतिनिधीत्व केले होते .

              अशोक कामटे हे पोलीस दलामध्ये बॉडी बिल्डर म्हणून प्रसिद्ध होते . त्यांनी बंधकांना दहशतवाद्यांच्या तावडीतून सोडवण्यासाठीचे विशेष प्रशिक्षण घेतले होते . मुंबई हल्ल्याच्या वेळी ते मुंबईच्या पूर्व विभागात ड्युटीवर होते . त्यामुळे त्यांना कामा हॉस्पिटल कारवाईसाठी इमारतींमध्ये लपलेल्या दहशतवाद्यांशी सामना करण्यासाठी पाचारण करण्यात आले होते. कामटे हे 1989 च्या बॅचचे आयपीएस अधिकारी होते . त्यांनी पोलीस अधीक्षक म्हणून भंडारा , सातारा , ठाणे ग्रामीण येथे काम केले . वर्ष 1999 ते 2000 या कालावधीत युएनमिशन बोस्निया येथे प्रतिनियुक्तीवर होते . वर्ष 2000 मधे डेपुटी कमिशनर पोलीस मुंबई म्हणून नेमणूक झाली . त्यानंतर कोल्हापूर सांगली आणि सोलापूर येथे जिल्हा पोलीस प्रमुख पदावर नेमणूक झाली . त्यांनी वर्ष 2008 मधे अतिरिक्त पोलीस आयुक्त म्हणून मुंबई येथे कार्यभार स्वीकारला आणि पाचच महिन्यात 26 नोव्हेंबर 2008 रोजी मुंबईवरील दहशतवादी हल्ल्यात त्यांना वीरमरण आले .


त्यांच्या पत्नी विनिता कामटे ( सहलेखिका विनिता देशमुख ) यांनी " टु द लास्ट बुलेट ' या पुस्तकात त्यांच्या आठवणी लिहिल्या आहेत , अखेरचा प्रवास या प्रकरणात अशोक कामटे यांच्या अंतिम यात्रेचे अत्यंत हृदयद्रावक वर्णन केले आहे . विनीता कामटे लिहितात - माझे सासरे तर दुःखाने पूर्ण कोलमडले होते . पण तेही एक लष्करी अधिकारी होते अखेरच्या क्षणी त्यांच्या मनातला सैनिक जागा झाला आणि अखेरची मानवंदना चालू असताना त्यांनीही खाडकन सॅल्यूट ठोकत वीरमरण प्राप्त केलेल्या आपल्या पुत्राला अखेरची सलामी दिली . तो जसा जगला तसच त्याला बघणं मला आवडेल . अशा कर्तव्य दक्ष अशोकास 2009 मध्ये त्यांना मरणोत्तर अशोक चक्र देऊन सन्मानित करण्यात आले.


          *जयहिंद* 



ज़ाकिर हुसैन

 

      

                 *ज़ाकिर हुसैन*  

          (भारत के तिसरे राष्ट्रपती)

            *जन्म : 8 फ़रवरी, 1897*

             (हैदराबाद, आंध्र प्रदेश)

            *मृत्यु : 3 मई, 1969*

                 ( दिल्ली)                                          पिता- फ़िदा हुसैन खान

पत्नी : शाहजेहन बेगम

नागरिकता : भारतीय

प्रसिद्धि : भारत के तीसरे राष्ट्रपति

पार्टी : कांग्रेस

पद : राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, बिहार के राज्यपाल

कार्य काल राष्ट्रपति, भारत- 13 मई 1967 से 3 मई 1969 तक

उपराष्ट्रपति, भारत- 13 मई 1962 से 12 मई 1967 तक

राज्यपाल, बिहार- 6 जुलाई 1957 से 11 मई 1962 तक

शिक्षा : पी.एच.डी

विद्यालय : बर्लिन विश्वविद्यालय

भाषा : हिंदी

पुरस्कार-उपाधि : भारत रत्न (1963), पद्म विभूषण (1954)

अन्य जानकारी : भारतीय प्रेस आयोग, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, यूनेस्को, अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा सेवा तथा केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से भी जुड़े रहे।

                 डॉ. ज़ाकिर हुसैन भारत के तीसरे राष्ट्रपति थे। उनका राष्ट्रपति कार्यकाल 13 मई 1967 से 3 मई 1969 तक रहा। डॉ. जाकिर हुसैन मशहूर शिक्षाविद् और आधुनिक भारत के द्रष्टाथे। ये बिहार के राज्यपाल (कार्यकाल- 1957 से 1962 तक) और भारत के उपराष्ट्रपति (कार्यकाल- 1962 से 1967 तक) भी रहे। उन्हें वर्ष 1963 मे भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 1969 में असमय देहावसान के कारण वे अपना राष्ट्रपति कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।

💁🏻‍♂️ *जीवन परिचय*

डॉ. ज़ाकिर हुसैन का जन्म 8 फ़रवरी, 1897 ई. में हैदराबाद, आंध्र प्रदेश के धनाढ्य पठान परिवार में हुआ था। कुछ समय बाद इनके पिता उत्तर प्रदेश में रहने आ गये थे। केवल 23 वर्ष की अवस्था में वे 'जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय' की स्थापना दल के सदस्य बने। वे अर्थशास्त्र में पी.एच.डी की डिग्री के लिए जर्मनी के बर्लिन विश्वविद्यालय गए और लौट कर जामिया के उप कुलपति के पद पर भी आसीन हुए। 1920 में उन्होंने 'जामिया मिलिया इस्लामिया' की स्थापना में योगदान दिया तथा इसके उपकुलपति बने। इनके नेतृत्व में जामिया मिलिया इस्लामिया का राष्ट्रवादी कार्यों तथा स्वाधीनता संग्राम की ओर झुकाव रहा। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति बने तथा उनकी अध्यक्षता में ‘विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग’ भी गठित किया गया। इसके अलावा वे भारतीय प्रेस आयोग, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, यूनेस्को, अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा सेवा तथा केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से भी जुड़े रहे। 1962 ई. में वे भारत के उपराष्ट्रपति बने।


🌀 *कार्यक्षेत्र*

डॉ. ज़ाकिर हुसैन भारत के राष्ट्रपति बनने वाले पहले मुसलमान थे। देश के युवाओं से सरकारी संस्थानों का वहिष्कार की गाँधी की अपील का हुसैन ने पालन किया। उन्होंने अलीगढ़ में मुस्लिम नेशनल यूनिवर्सिटी (बाद में दिल्ली ले जायी गई) की स्थापना में मदद की और 1926 से 1948 तक इसके कुलपति रहे। महात्मा गाँधी के निमन्त्रण पर वह प्राथमिक शिक्षा के राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष भी बने, जिसकी स्थापना 1937 में स्कूलों के लिए गाँधीवादी पाठ्यक्रम बनाने के लिए हुई थी। 1948 में हुसैन अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति बने और चार वर्ष के बाद उन्होंने राज्यसभा में प्रवेश किया। 1956-58 में वह संयुक्त राष्ट्र शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति संगठन (यूनेस्को) की कार्यकारी समिति में रहे। 1957 में उन्हें बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया और 1962 में वह भारत के उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए। 1967 में कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार के रूप में वह भारत के राष्ट्रपति पद के लिए चुने गये और मृत्यु तक पदासीन रहे।


♨️ *अनुशासनप्रिय व्यक्तित्त्व*

डॉ. ज़ाकिर हुसैन बेहद अनुशासनप्रिय व्यक्तित्त्व के धनी थे। उनकी अनुशासनप्रियता नीचे दिये प्रसंग से समझा जा सकता है। यह प्रसंग उस समय का है, जब डॉ. जाकिर हुसैन जामिया मिलिया इस्लामिया के कुलपति थे। जाकिर हुसैन बेहद ही अनुशासनप्रिय व्यक्ति थे। वे चाहते थे कि जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र अत्यंत अनुशासित रहें, जिनमें साफ-सुथरे कपड़े और पॉलिश से चमकते जूते होना सर्वोपरि था। इसके लिए डॉ. जाकिर हुसैन ने एक लिखित आदेश भी निकाला, किंतु छात्रों ने उस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। छात्र अपनी मनमर्ज़ी से ही चलते थे, जिसके कारण जामिया विश्वविद्यालय का अनुशासन बिगड़ने लगा। यह देखकर डॉ. हुसैन ने छात्रों को अलग तरीके से सुधारने पर विचार किया। एक दिन वे विश्वविद्यालय के दरवाज़े पर ब्रश और पॉलिश लेकर बैठ गए और हर आने-जाने वाले छात्र के जूते ब्रश करने लगे। यह देखकर सभी छात्र बहुत लज्जित हुए। उन्होंने अपनी भूल मानते हुए डॉ. हुसैन से क्षमा मांगी और अगले दिन से सभी छात्र साफ-सुथरे कपड़ों में और जूतों पर पॉलिश करके आने लगे। इस तरह विश्वविद्यालय में पुन: अनुशासन कायम हो गया।


🎖️ *सम्मान और पुरस्कार*

पद्म विभूषण (1954)

भारत रत्न (1963)

🕯️ *निधन*

राष्ट्रपति बनने पर अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने कहा था कि समूचा भारत मेरा घर है और इसके सभी बाशिन्दे मेरा परिवार हैं। 3 मई 1969 को उनका निधन हो गया। वह देश के ऐसे पहले राष्ट्रपति थे जिनका कार्यालय में निधन हुआ।

                 

        



कल्पना दत्ता

               

                 *कल्पना दत्ता*

          (भारतीय क्रांतिकारक)


      *जन्म : 27 जुलै, 1913*

     (सिरपूर, चितगांव (बांग्लादेश), बंगाल)


     *मृत्यु : 8 फेब्रुवारी 1995*

        (कलकत्ता, पश्चिम बंगाल)


इतर नाव : कल्पना जोशी

पति : पूरन चंद जोशी

नागरिकता : भारतीय

चळवळ : भारतीय स्वातंत्र्य लढा

जेल यात्रा : फेब्रुवारी 1934 मध्ये 21 वर्षाच्या कल्पना दत्त यांना आजीवन कारावासाची शिक्षा झाली.


अन्य माहीती : सप्टेंबर  1979  मध्ये कल्पना दत्त यांना पुण्यात 'वीर महिला' या उपाधि ने सम्मानित  केले गेले.


कल्पना दत्ता  (नंतर कल्पना जोशी) ही एक भारतीय स्वातंत्र्य चळवळीतली कार्यकर्ती होती. ती सूर्य सेनच्या सशस्त्र चळवळीत होती. हे सूर्य सेन १९३० च्या चितगांवला झालेल्या शस्त्रागार धाडेच्या मागे होते. नंतर ती भारतीय कम्युनिस्ट पक्षाची सदस्य झाली, व तिने पुरणचंद जोशीशी विवाह केल. ती १९४३ साली भाकपची अध्यक्ष झाली. 


💁‍♀️ *सुरुवातीचे जीवन*


कल्पनाचा जन्म बंगालमधील चितगांव जिल्ह्यातील सिरपूर गावात झाला. १९२९ साली मॅट्रिकची परीक्षा पास झाल्यावर, ती कलकत्त्याला बे्थ्थ्यून काॅलेज येथे विज्ञानात पदवी करण्यसाठी गेली. तेथे असतानाच ती विद्यार्थी संघ या क्रांतिकारी संस्स्थेची सदस्य झाली. त्या संस्थेत वीणा दास, प्रीतिलता वड्डेदार, ह्या पण सक्रिय होत्या.


🔫 *सशस्त्र चळवळ*


चितगांव शस्त्रागार धाड ही १८ एप्रिल १९३० ला पडली. त्यानंतर कल्पना १९३१ सालच्या मे मध्ये सूर्य सेनच्या सशस्त्र गटाच्या 'भारतीय रिपब्लिकन आर्मी’ च्या चितगांव शाखेत भरती झाली. सप्टेंबर १९३१ ला सूर्य सेनने तिला व प्रीतिलता वड्डेदारला चितगांव येथील युरोपियन क्लबवर हल्ला करण्यासाठी नेमले. पण हल्ला करण्याच्या एक आठवडा आधीच तिला हल्ल्याच्या जागेची टेहळणी करताना अटक झाली. जामिनावर सुटका झाल्यावर तिने लपून राहायला सुरुवात केली. १७ फेब्रुवारी १९३३ रोजी पोलिसांनी तिच्या लपण्याच्या जागेला घेरा दिला व सूर्य सेनला पकडले; पण कल्पना तिथून पळून निघाली. पुढे कल्पनाला १९ मे १९३३ रोजी अटक झाली. चितगांव धाडीच्या दुसर्‍या सुनावणीत तिला शिक्षा झाली. १९३९ मध्ये तिची सुटका झाली.


🙍🏻‍♀️ *नंतरचे जीवन*


कल्पना १९४० ला कलकत्ता विद्यापीठातून पद्वीधर झाली, व भाकपची सदस्य झाली. १९४३ च्या बंगालमधील दुष्काळात व बंगालच्या फाळणीच्या वेळेस तिने स्वयंसेवक म्हणून काम केले. तिने तिचे आत्मकथात्मक पुस्तक, चितगांव शस्त्रागार धाडीच्या आठवणी हे १९४५ ला इंग्रजीत प्रकाशीत केले. १९४६ मध्ये ती बंगाल विधान सभेत चितगांव येथून भाकप कडून निवडणूक लढली, पण जिंकू शकली नाही.


नंतर तिने भारतीय संख्याशास्त्रीय संस्था (Indian Statistical Institute) येथे निवृत्त होईपर्यंत नोकरी केली. ८ फेब्रुवारी १९९५ रोजी तिचा म्रुत्यू झाला.


💁‍♀️ *वैयक्तिक जीवन*


कल्पना दत्ताने १९४३ मध्ये भाकपचे अध्यक्ष पुरनचंद जोशी, ह्यांच्याशी विवाह केला.. त्यांना दोन मुले झाली. चंद व सूरज. चंद जोशी हा हिंदुस्तान टाइम्समध्ये पत्रकार होता.


🎞️ *चित्रपट*


चितगांवच्या धाडीवर २०१० मध्ये 'खेले हम जी जान से' हा हिंदी चित्रपट निघाला. त्यात दीपिका पादुकोनने कल्पनाचे काम केले होते. पुन्हा १२ आॅक्टोबर २०१२ ला 'चितगांव' हा आणखी एक चित्रपट निघाला त्याची निर्मिती आणि दिग्दर्शन वेदव्रत पॅन, ह्या नासातील माजी वैज्ञानिकाने केले होते.